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संपादकीय

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धन की तलाशः सीओपी 28 और ‘हानि एवं क्षति’कोष

06.12.23 239 Source: December 02, The Hindu
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धन की तलाशः सीओपी 28 और ‘हानि एवं क्षति’कोष

एक ठीकठाक ‘हानि एवं क्षति’ कोष (एलएंडडी फंड) की मांग तीन दशक पुरानी है और यह जलवायु न्याय की एक बुनियादी अभिव्यक्ति है। एलएंडडी फंड धन और तकनीक का एक स्थायी कोष (कॉर्पस) है जिसे विकसित देश भरेंगे और जिसका इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों से निपटने के लिए बाकी देशों द्वारा किया जायेगा। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में चल रही कॉप 28 (सीओपी28) की जलवायु वार्ता के पहले दिन, सदस्य-राष्ट्रों के प्रतिनिधि एलएंडडी फंड का संचालन शुरू करने पर राजी हो गये। पिछले साल मिस्र में कॉप 27 वार्ता के अंत में, इस तरह का फंड शुरू करने का एलान एक बहुत बड़ी जीत थी, जो मुख्यत:, पाकिस्तान के नेतृत्व वाले जी-77 समूह के देशों व चीन के दृढ़ प्रयासों की बदौलत हासिल हुई। संक्रमणकालीन समिति (ट्रांजिशनल कमेटी या टीसी) की चार बैठकें यह तय करने के लिए थीं कि यह धन कैसे वितरित किया जायेगा। लेकिन टीसी-4 बैठक के मुद्दे, जो तदर्थ टीसी-5 बैठक में भी बरकरार रहे, यह उजागर करते हैं कि कैसे नव-संचालित फंड से कई बेहद अहम मुद्दे जुड़े हैं। साथ ही यह कॉप 28 में आशावाद और इसके अमीराती राष्ट्रपति के लिए कूटनीतिक जीत का संकेत है।


पहली बात, इस फंड को चार साल की अंतरिम अवधि के लिए विश्व बैंक द्वारा संभाला जायेगा और इसकी निगरानी एक स्वतंत्र सचिवालय द्वारा की जायेगी। उम्मीद है कि बैंक इसके लिए अच्छा खासा संचालन शुल्क वसूल करेगा। विकासशील देशों ने पहले इस प्रस्ताव का विरोध किया, लेकिन टीसी-5 की बैठक में, कुछ रियायतों के बदले, वे इसके लिए मान गये। दूसरी बात, कुछ देशों ने फंड में रकम देने का वादा किया है (जिसमें जापान द्वारा एक करोड़ डॉलर से लेकर जर्मनी व यूएई द्वारा 10-10 करोड़ डॉलर का वादा शामिल है), लेकिन क्या यह रकम फंड में नियमित अंतराल पर डाली जायेगी, यह स्पष्ट नहीं है। वादा की गयी रकम भी अपर्याप्त है। यह फिलहाल कुल 45 करोड़ डॉलर है, जबकि वास्तविक मांग कई अरब डॉलर की है। यह कसर रह जाने (हालांकि ऐसा मान लेना जल्दबाजी है) की एक पृष्ठभूमि है। विकसित देश जलवायु वित्त के लिए वादा की गयी 100 अरब डॉलर की रकम जुटाने की 2020 की अपनी समयसीमा से चूक गये और 2021 में केवल 89.6 अरब डॉलर मुहैया कराने में ही कामयाब हुए। इसके अलावा, योगदान स्वैच्छिक हैं, हालांकि हर देश को योगदान करने के लिए आमंत्रित किया गया है। अंत में, इस फंड के प्रबंधन को लेकर विश्व बैंक को कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी, जिसमें पारदर्शिता का

एक स्तर भी शामिल है जिसे उसने अभी तक कबूल नहीं किया है। इसके अलावा, उसे पेरिस समझौते के सभी पक्षों को रिपोर्ट भी देनी होगी। अगर उसकी देखरेख अनुपयुक्त पायी गयी, तो फंड विश्व बैंक से ‘बाहर निकल’ सकता है। एलएंडडी फंड की सामग्री तक उनकी आसान पहुंच होनी चाहिए जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। यह पहुंच समयबद्ध ढंग से, मीन मेख निकालने वाली नौकरशाहाना बाधाओं से मुक्त, और पर्याप्त मात्राओं में होनी चाहिए। जैसी स्थिति है, उसमें इस बात की बहुत कम गारंटी है कि इनमें से कोई भी जरुरत पूरी होगी। एलएंडडी फंड आखिरकार संचालन में आ चुका है, लेकिन अभी बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है।

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