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संपादकीय

रक्षा सौदे की जाँच जरुरी

11.11.21 446 Source: The Hindu
रक्षा सौदे की जाँच जरुरी

बोली प्रक्रिया और राफेल बिक्री समझौते दोनों में बिचौलियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए

फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के पहले बैच के आने के एक साल से अधिक समय के बाद, विमानों की उच्च गुणवत्ता और भारतीय वायु सेना की आवश्यकताओं के लिए उनके फिट होने के बावजूद, राफेल पर विवाद समाप्त होने से रुक नही रहा।एक तरफ जहां राफेल विमान अपने लड़ाकू स्क्वाड्रनों को बढ़ाने के लिए बेताब है वहीं दूसरी ओर उससे जुड़ी भ्रष्टाचार की खबर भी लगातार बाहर आती जा रही हैं।

मिडियापार्ट, एक फ्रांसीसी पोर्टल, ने अब कथित नकली चालानों का एक सेट प्रकाशित किया है, और दावा किया है कि डसॉल्ट एविएशन ने बिचौलिए और रक्षा ठेकेदार सुशेन गुप्ता को 2007-2012 के बीच रिश्वत में 7 मिलियन यूरो से अधिक का भुगतान किया, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सत्ता में थी।साथ ही इस न्यूज पोर्टल ने दावा किया है कि सीबीआई के पास अक्टूबर 2018 से इसका सबूत भी है। द हिंदू सहित कई अखबारों में पहले की जांच में प्रक्रियात्मक उल्लंघनों का खुलासा भी हुआ था,जिनमे लड़ाकू जहाजों की उच्च कीमत, ऑफसेट भागीदारों की पसंद, भ्रष्टाचार विरोधी धाराओं को हटाने पर सवाल भी उठाए गए थे साथ ही 2016 में हस्ताक्षरित भारत-फ्रांस अंतर-सरकारी समझौते (IGA) से संबंधित अन्य मुद्दों के बीच बैंक गारंटी की आवश्यकता को माफ करने पर भी प्रश्न उठाया गया था। मीडियापार्ट के लेख बिचौलियों की दोनो स्तर पर संदिग्ध भूमिका की ओर इशारा करते हैं, पहले जब 126 विमान खरीदने का प्रस्ताव दिया गया था,जो बाद में वापस ले लिया गया था,उसमें  और बाद में 2016 में फ्लाईअवे विमान के लिए जो डील हुई उसमें भी। अप्रैल 2021 में, मीडियापार्ट ने विस्तृत रूप से बताया था कि फ्रांसीसी भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी ने पाया था कि डसॉल्ट ने गुप्ता द्वारा चलाई जा रही कंपनी को राफेल के 50 मॉडलों के निर्माण के लिए एक मिलियन यूरो से अधिक का भुगतान किया था।जबकि कंपनी विमान मॉडल बनाने में विशेषज्ञता भी नहीं रखती है।इसके अलावा कम्पनी ने अपतटीय खातों और शेल कंपनियों को गुप्त कमीशन के रूप में कई मिलियन यूरो का भुगतान किया है। इसने यह भी आरोप लगाया था कि उसने डसॉल्ट एविएशन को अंतर-सरकारी समझौते से संबंधित क्लासिफाइड दस्तावेजों की आपूर्ति की थी, यहां तक ​​​​कि डसॉल्ट और भारतीय वार्ता टीम के बीच बेंचमार्क मूल्य निर्धारण के प्रमुख मुद्दे पर गतिरोध था।

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