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संपादकीय

संख्याबल का कानून

27.12.23 176 Source: December 27, The Hindu
संख्याबल का कानून

संसद का 18-दिवसीय शीतकालीन सत्र 21 दिसंबर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। इसने भारत के संसदीय लोकतंत्र को एक नये निचलेपन तक पहुंचते देखा, क्योंकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष से बातचीत करने से इनकार किया, अपनी कार्यपालिकीय जवाबदेही ताक पर रखी और देश के लिए दूरगामी असर रखने वाले कई विधेयकों को पारित कर डाला। इस दौरान विपक्षी सांसदों का बड़ा हिस्सा निलंबित रहा। अंतिम रूप से सामने आयी गिनती में, विपक्ष के कुल 146 सांसद निलंबित थे (राज्यसभा के 46 और लोकसभा के 100), क्योंकि उन्होंने सुरक्षा में सेंध के मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान के लिए आवाज बुलंद की। यह मुद्दा 13 दिसंबर को लोकसभा के सदन में प्रदर्शनकारियों के प्रवेश हासिल करने से जुड़ा था। टकराव अब भी कायम है। राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर विपक्षी सांसदों के निलंबन को सरकार द्वारा ‘पूर्व-निर्धारित और पूर्व-नियोजित’करार दिया है। खड़गे ने लिखा है कि दिमाग का कोई इस्तेमाल न किया जाना साफ दिख रहा था, निलंबित लोगों में एक ऐसा सांसद भी था जो लोकसभा में मौजूद तक नहीं था। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी सत्र का सुचारु संचालन सुनिश्चित नहीं कर सके। धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा की गयी कोशिशों में निष्पक्षता की आवश्यक झलक का अभाव था।


सरकार ने देश की फौजदारी संहिता, दूरसंचार के नियमन और भारत के चुनाव आयोग की नियुक्ति का पुनर्लेखन करने वाले नये कानूनों को ज्यादातर विपक्षी सदस्यों की गैरहाजिरी में पारित कराया। इन कानूनों की साझा खासियत कार्यपालिका की शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि है, और यह कोई संयोग नहीं कि इन्हें बगैर किसी सार्थक संसदीय बहस के, जो विरोधी विचारों को आत्मसात करती, पारित किया गया। सरकार ने सुरक्षा में सेंध पर विपक्ष द्वारा बयान की मांग तक को ठुकरा दिया। यह दुराग्रह का प्रदर्शन था जो संख्यात्मक बहुमत को तार्किक और नैतिक रूप से गलत न हो सकने की योग्यता के बराबर मानता है। सरकार ने निलंबन की नौबत लाने के लिए विपक्ष को ही दोषी बताया है, और यही बात लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने दोहरायी है। एक विपक्षी सांसद द्वारा धनखड़ की कथित मिमिक्री का मामला मुद्दे से ध्यान भटकाने वाला था, जो सत्तारूढ़ दल के लिए सुविधाजनक था। धनखड़ ने राज्यसभा से खुद कहा कि कथित मिमिक्री उनकी बिरादरी का अपमान है। उनके जैसे कानूनी विशेषज्ञ की तो बात छोड़िए, किसी के भी द्वारा इन दोनों बातों को आपस में जोड़ना परेशान करने वाला है। यह अलग बात है कि क्या विपक्ष को कुछ गुमराह नौजवानों द्वारा सुरक्षा उल्लंघन किये जाने पर बहस की मांग में इतना समय और प्रयास लगाना चाहिए था। इसका कुल जमा नतीजा, भले यह मकसद न हो, संसदीय कामकाज को पटरी से उतारा जाना और कार्यपालिका के लिए खुली छूट हासिल करना रहा।

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