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संपादकीय

मौन वीटो: न्यायपालिका-कार्यपालिका संबंध

24.04.23 643 Source: The Hindu : April 22, 2023
मौन वीटो: न्यायपालिका-कार्यपालिका संबंध

 

मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर की नियुक्ति की अपनी सिफारिश को वापस लेकर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को अपनी मर्जी चलाने दी है।

केंद्र सरकार ने आठ महीने तक कॉलेजियम के फैसले को अमली जामा नहीं पहनाया। इससे कोई सिर्फ यही निष्कर्ष निकाल सकता है कि केंद्र जानबूझकर इस स्थानांतरण को रोकने की नीयत से कॉलेजियम की सिफारिश पर कार्रवाई करने से परहेज कर रहा है।

कॉलेजियम ने अब मद्रास हाईकोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति मुरलीधर की जगह बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.वी.गंगापुरवाला का नाम प्रस्तावित करने का फैसला किया है।

मद्रास हाईकोर्ट में एक स्थायी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की कॉलेजियम की दिलचस्पी के पीछे की वजह यह है कि वहां वरिष्ठतम न्यायाधीश लगभग आठ महीने से मुख्य न्यायाधीश का जिम्मा संभाल रहे हैं।

सितंबर 2022 में यह फैसला लिया गया था कि मद्रास हाईकोर्ट के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति एम.एन. भंडारी की जगह लेने के लिए न्यायमूर्ति मुरलीधर को उड़ीसा हाईकोर्ट से वहां भेजा जाएगा।

इस बीच, चेन्नई में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. राजा मुख्य न्यायाधीश का जिम्मा संभाल रहे थे। लेकिन नवंबर 2022 में उन्हें राजस्थान हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने का फैसला किया गया। स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने के न्यायमूर्ति राजा के अनुरोध को कॉलेजियम द्वारा खारिज कर दिया गया।

हालांकि, केंद्र ने उनके स्थानांतरण को भी अधिसूचित नहीं किया। लिहाजा, मद्रास हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर असामान्य रूप से लंबी अवधि तक उनकी निरंतरता बनी रही। वह 24 मई, 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। पूरे हालात के प्रति अपनी नाखुशी को रेखांकित करने के लिए, कॉलेजियम के प्रस्ताव ने यह दोहराया कि न्यायमूर्ति राजा का स्थानांतरण “जल्द से जल्द” किया जाए और कहा कि न्यायाधीश के रूप में उनका बने रहना भी न्यायमूर्ति गंगापुरवाला की नियुक्ति में बाधक नहीं होगी।

हाल के ऐसे कई उदाहरण सामने हैं जब सरकार ने संभावित रूप से नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति के राजनीतिक विचारों को पीठ में उनकी प्रोन्नति को रोकने की नीयत से उजागर किया है। हालांकि, ज्यादातर मामलों में, नियुक्ति को रोकने के लिए निष्क्रियता को मुख्य साधन बनाया गया है।

ऐसे में, एक सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र की ओर से जानबूझकर बरती गई इस किस्म की निष्क्रियता को परिपाटी बनने दिया जाएगा। बेशक, पिछला कदम केंद्र को कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किसी भी नियुक्ति या स्थानांतरण को वीटो करने के अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। कॉलेजियम प्रणाली में तमाम खामियों के बावजूद, वर्तमान हालात न्यायपालिका की आजादी के लिहाज से कतई अनुकूल नहीं हैं।

यह प्रणाली न्यायिक प्रधानता के आधार पर स्थापित की गई है, लेकिन अब ऐसा जान पड़ता है कि महज कॉलेजियम की सिफारिशों को लागू करने से इनकार करके कार्यपालिका ने इसे दरकिनार करने का एक रास्ता खोज लिया है। दरअसल, वर्तमान सरकार ने किसी नियुक्ति के संबंध में कॉलेजियम द्वारा अपना रुख दोहराए जाने की स्थिति में उन सिफारिशों के सरकार के लिए बाध्यकारी होने की कानूनी स्थिति को बदल दिया है।

 

भारत में न्यायाधीश के स्थानांतरण के लिये वर्तमान प्रक्रिया:

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