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सुप्रीम कोर्ट ने पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले एक और पुरातन विचार के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि महिला कर्मचारियों को शादी करने पर दंडित करने वाले नियम असंवैधानिक हैं। “महिला की शादी हो जाने की वजह से रोजगार खत्म कर देना करना भेदभाव और असमानता का एक गंभीर मामला है। ऐसे पितृसत्तात्मक नियमों को स्वीकार करना मानवीय गरिमा और भेदभाव-रहित एवं निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को कमजोर करता है।” ये टिप्पणियां उस फैसले का हिस्सा हैं जिसने सैन्य नर्सिंग सेवा की पूर्व लेफ्टिनेंट एवं स्थायी आयुक्त अधिकारी सेलिना जॉन के अधिकारों को बरकरार रखा है। सेलिना को 1988 में शादी करने की वजह से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को सुश्री जॉन को आठ हफ्ते के भीतर मुआवजे के रूप में 60 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। सरकार ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की लखनऊ पीठ के एक फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील की थी। न्यायाधिकरण की पीठ ने 2016 में सेलिना के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस बात को इंगित करते हुए कि उनकी बर्खास्तगी “गलत और अवैध” थी, अदालत ने कहा कि शादी के खिलाफ नियम सिर्फ महिला नर्सिंग अधिकारियों पर लागू था। महिलाएं सेना में लैंगिक समानता के लिए एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ती रही हैं - उन्हें 2020 और 2021 में दिए गए फैसलों के बाद स्थायी कमीशन दिया गया। इस आशय के कथन को करनी में तब्दील करके पुष्ट करना होगा कि भारतीय सेना ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
ऐसा नहीं है कि असैनिक क्षेत्र में हालात बहुत बेहतर हैं और नौकरी के लिए साक्षात्कार के दौरान महिलाओं से अक्सर असहज कर देने वाले व्यक्तिगत सवाल पूछे जाते हैं। उनसे शादी और मातृत्व से जुड़ी भावी योजनाओं के बारे में पूछताछ की जाती है। अगर श्रमशक्ति में महिलाओं की श्रम संबंधी भागीदारी– श्रमशक्ति के ताजा आवधिक आंकड़ों (अक्टूबर-दिसंबर 2023) के अनुसार, भारत में सभी उम्र की महिलाओं की भागीदारी महज 19.9 फीसदी ही है - को बढ़ाना है, तो धमकाने वाली मानसिकता की तो बात ही छोड़िए शिक्षा, रोजगार और अवसरों की राह में आनेवाली बाधाओं को तोड़ना होगा। यह एक हकीकत है कि कई लड़कियों, खासकर गरीब तबकों की, को आर्थिक से लेकर उपयुक्त शौचालयों की कमी जैसी विभिन्न वजहों से स्कूल छोड़ना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र के जेंडर स्नैपशॉट 2023 ने यह बतलाते हुए दुनिया में लैंगिक समानकी स्थिति के बारे में एक गंभीर तस्वीर पेश की थी कि अगर सुधार के उपाय नहीं किए गए, तो महिलाओं की अगली पीढियां भी पुरुषों के मुकाबले घरेलू कामों और कर्तव्यों पर अनुपात से ज्यादा समय खर्च करती रहेंगी और नेतृत्वकारी भूमिकाओं से दूर रहेंगी। अगर लड़कियों व महिलाओं को प्रतिबंधात्मक सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों का पालन करना पड़े, तो सरकार की ओर से उनके वास्ते नियमित रूप से एलान की जाने वाली योजनाओं का जमीनी स्तर पर कोई मतलब नहीं रह जाएगा। महिला कर्मचारियों के विवाह और उनकी घरेलू भागीदारी को पात्रता न रखने का आधार बनाने वाले नियमों के असंवैधानिक होने संबंधी अदालत की राय को सभी संगठनों को सुनना चाहिए ताकि कार्यस्थल महिलाओं के लिए बाधक बनने के बजाय उन्हें समर्थ बनाने वाले बन सकें।