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संपादकीय

राष्ट्रीय ग्रीवा कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम को आकार देने की कवायद

24.02.24 464 Source: The Hindu (21 February 2024)
राष्ट्रीय ग्रीवा कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम को आकार देने की कवायद

स्वास्थ्य का मसला शायद ही कभी एकल-आयामी होता है और इसे इस तरह से देखा भी नहीं जाना चाहिए। सरकारी नीति को, खासतौर से, इस मुद्दे को संपूर्णता में समझना चाहिए और इसके वांछित लक्ष्य को ज्यादा से ज्यादा हासिल करने के लिए, अपनी जमीनी रणनीति में विभिन्न पहलुओं को आत्मसात करना चाहिए। अंतरिम बजट पेश करने के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा किया गया यह एलान कि सरकार नौ से 14 वर्ष की लड़कियों को ग्रीवा कैंसर से बचाने के लिए टीकाकरण को प्रोत्साहित करने की योजना बना रही है, निस्संदेह सही दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है। भले ही यह योजना चुनाव के बाद लागू की जाएगी, लेकिन अभी यह सवाल करने का भी समय है कि क्या ग्रीवा कैंसर से निपटने का कोई भी कार्यक्रम तभी संपूर्ण नहीं होगा जब इसमें जांच (स्क्रीनिंग) के पहलू को शामिल किया जाए। ग्रीवा (शाब्दिक रूप से, गर्भाशय की गर्दन) का कैंसर तमाम किस्म के कैंसरों में अनूठा है क्योंकि इसके लगभग सभी मामले (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 99 फीसदी) मानव पैपिलोमावायरस (एचपीवी), जोकि यौन संपर्क से फैलने वाला एक आम वायरस है, के संक्रमण से जुड़े होते हैं। अधिकांश एचपीवी संक्रमण जहां स्वाभाविक तरीके से ठीक हो जाते हैं और महिलाएं लक्षण-मुक्त रहती हैं, वहीं लगातार संक्रमण से ग्रीवा कैंसर हो सकता है। यह भारत में कैंसर से होने वाली महिलाओं की मौतों (सालाना 77,000 से ज्यादा) की दूसरी सबसे अहम वजह है और अनुमान है कि 15 से 44 वर्ष के बीच की भारतीय महिलाओं में यह दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है। अच्छी खबर जहां टीके की उपलब्धता पर आधारित है, वहीं गंभीर तथ्य यह है कि ग्रीवा कैंसर की जांच के राष्ट्रीय प्रसार का औसत महज दो फीसदी से नीचे है और जांच के नतीजे पता लगाने के चरण पर निर्भर होते हैं।


विडंबना यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में न्यूनतम उपकरणों - मानव आंख, सफेद सिरके का पतला होना और लुगोल के आयोडीन की एक बूंद - के साथ ग्रीवा कैंसर का आसानी से निदान किया जा सकता है। इन्हें वीआईए और वीआईएलआई परीक्षणों के रूप में जाना जाता है तथा कोशिका विज्ञान के तहत इस रोग के उन्नत चरण का पता लगाने से बहुत पहले कैंसर पूर्व घावों और कैंसर का पता लगाने में मदद मिलती है। असामान्य वृद्धि को नष्ट करने के लिए एक सरल व छोटी प्रक्रिया, क्रायोथेरेपी, रोगी के जागते हुए की जा सकती है। यह देखते हुए कि ग्रीवा कैंसर को रोकना, पहचानना और उसका इलाज करना आसान है, इतनी तादाद में महिलाओं का इस बीमारी से मरना निहायत ही अस्वीकार्य है। अब जबकि सरकार अपना टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने वाली है, उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर जांच भी अनिवार्य करनी चाहिए और अगर किसी भी किस्म की असामान्यता की पहचान होती है, तो रोगी को तुरंत क्रायोथेरेपी दी जानी चाहिए। इस बात की संभावना नहीं है कि अकेले युवा लड़कियों के टीकाकरण का अल्प और मध्यम अवधि में कोई दूरगामी असर होगा। इस बीमारी से होने वाली मौतों को रोकने का एकमात्र तरीका राष्ट्रीय ग्रीवा कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में इलाज की संपूर्ण श्रृंखला, जो उम्र, शिक्षा, सामर्थ्य या सामाजिक स्थिति से परे जाकर सभी महिलाओं के लिए सुलभ हो, को इस्तेमाल में लाना है।

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