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संपादकीय

नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता जताने के पीछे की असलियत

11.12.23 163 Source: December 06, The Hindu
नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता जताने के पीछे की असलियत

वैश्विक जलवायु के इर्द-गिर्द होने वाली चर्चाओं के घेरे में 1.5 डिग्री सेल्सियस या पूर्व-औद्योगिक काल से वैश्विक तापमान में हुई औसत वृद्धि है। अब जबकि तापमान में बढ़ोतरी उस निर्धारित सीमा की एक डिग्री सेल्सियस से पार हो चुकी है, दुबई में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन में चल रही सारी खींचतान बाकी बची आधे डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी को रोकने को लेकर है। उत्सर्जन में कटौती की वैश्विक शपथ इस लक्ष्य को हासिल करने के लिहाज से अपर्याप्त हैं। वर्तमान अनुमान यह है कि तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए, दुनिया को 2030 तक तीन गुना अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता या कम से कम 11,000 गीगावॉट की जरुरत है। इस तीन गुनी (ट्रिपलिंग) क्षमता की जरुरत को लेकर वैश्विक स्तर पर व्यापक सहमति है, जिसे पहली बार सितंबर में दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में नेताओं की नई दिल्ली घोषणा में औपचारिक रूप से व्यक्त किया गया था। दुबई शिखर सम्मेलन से पहले, यह माना गया था कि जलवायु से जुड़े संयुक्त राष्ट्र करार पर हस्ताक्षर करने वाले लगभग 190 देशों के बड़े समूह द्वारा इस सहमति का व्यापक रूप से समर्थन किया जाएगा। यह पता चला है कि अब तक 118 देशों ने इसका समर्थन किया है और दो प्रमुख देश यानी भारत और चीन अब तक इस पर हस्ताक्षर करने से बचते रहे हैं। नवीकरणीय और ऊर्जा दक्षता से जुडी वैश्विक शपथ, जोकि अभी भी एक मसौदा पाठ है, कहती है कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की अपने प्रयास में, हस्ताक्षरकर्ताओं को “...निरंतर कोयला आधारित बिजली उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने, खासकर बेरोकटोक चलने वाले नए कोयला चालित विद्युत संयंत्र में निरंतर निवेश को रोकने” के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए। यही भारत के लिए एक प्रमुख बाधा बनने वाली लकीर है।


अब जबकि भारत ने खुद को नवीकरणीय ऊर्जा के एक मसीहा के रूप में स्थापित किया है - इसका 2030 का लक्ष्य, जैसा कि इसके औपचारिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में व्यक्त किया गया है, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 170 गीगावॉट से तीन गुना बढ़ाकर 500 गीगावॉट करने की बात करता है - इसने कई बार दोहराया है कि उसे कुछ ईंधनों को छोड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कोयले से चलने वाले संयंत्र भारत के लगभग 70 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। जिन विकसित देशों ने कोयला के इस्तेमाल को छोड़ने की प्रतिबद्धता जताई है, उनके पास अक्सरहां बैकअप के रूप में बड़ी मात्रा में अन्य जीवाश्म-ईंधन के संसाधन उपलब्ध हैं। दुबई में संयुक्त राज्य अमेरिका 2035 तक अपनी ऊर्जा संबंधी इस्तेमाल के लिए कोयले को पूरी तरह से त्यागने की प्रतिबद्धता जताने वाले 56 अन्य देशों के समूह में शुमार हो गया। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी ऊर्जा का लगभग 20 फीसदी ही कोयले से तथा कम से कम 55 फीसदी तेल एवं गैस से हासिल करता है और उसकी योजना वर्तमान के बनिस्बत 2030 में दरअसल तेल एवं गैस से और ज्यादा उत्पादन करने की है। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता जताने का विरोधाभास यह है कि वे अभी तक सक्रिय रूप से जीवाश्म ईंधन की जगह दूसरा विकल्प अपनाने को तैयार नहीं है। जब तक मौजूदा और भावी जीवाश्म क्षमता को वाकई स्वच्छ ऊर्जा से बदलने के प्रति ईमानदार प्रतिबद्धता नहीं दिखाई जाती, तब तक तमाम शपथ और घोषणाओं का मतलब कागजी मसौदे से ज्यादा की नहीं है।

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