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संपादकीय

समन्वय की जरूरतः उत्तर भारत और नवबंर में वार्षिक वायु गुणवत्ता

08.11.23 220 Source: 06 November 2023,The Hindu
समन्वय की जरूरतः उत्तर भारत और नवबंर में वार्षिक वायु गुणवत्ता

दिल्ली और आसपास के राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हिस्से हर साल हवा की गुणवत्ता में बड़ी गिरावट का सामना करते हैं। यह वो समय होता है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून विदा हो चुका होता है और इसी के साथ, ऊपरी वायुमंडल में वो तेज हवाएं भी मद्धिम पड़ चुकी होती हैं जो निर्माण कार्य, ड्राइविंग, बिजली उत्पादन, पुआल जलाने जैसी तरह-तरह की इंसानी गतिविधियों से उपजे प्रदूषकों को अमूमन अपने साथ बहा ले जाती हैं। बीते वर्षों के दौरान, इस संकट को समझने, उसे स्वीकारने और उससे निपटने के लिए कई अध्ययन कराये गये हैं और कार्यपालिका के स्तर पर कार्रवाई शुरू की गयी है। प्रदूषकों के तुलनात्मक योगदान और प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियों के बरक्स सुधारात्मक हस्तक्षेप की सीमाओं तथा इसके चलते आर्थिक जीवन में होने वाले व्यवधान को लेकर विज्ञान काफी स्पष्ट है। इसका नतीजा यह है कि वायु प्रदूषण संकट अब बेबसी में बदल चुका है। दिल्ली और उससे लगे राज्यों में वायु प्रदूषण के कारणों से निपटने की जिम्मेदारी जिस वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को दी गयी है, वह अभी विशेषज्ञता से भरा एक निकाय है, लेकिन उसकी शक्तियां वायु गुणवत्ता में गिरावट के आधार पर किए जाने वाले उपायों की श्रेणी (ग्रेड) की सिफारिश करने तक ही सीमित हैं।

इसी 31 अक्टूबर को सीएक्यूएम ने बताया कि इस साल जनवरी से लेकर अक्टूबर तक दिल्ली में दैनिक औसत वायु गुणवत्ता बीते छह सालों में सबसे अच्छी थी, लेकिन वह इस तथ्य को गोल कर जाता है कि नवंबर के महीने में ‘गंभीर’ (450 एक्यूआई से ज्यादा) वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या लगभग जस की तस बनी हुई है। वर्ष 2022 में नवंबर के पहले पखवाड़े में एक्यूआई तीन दिन गंभीर श्रेणी में था। यही संख्या 2021, 2020 और 2019 में भी थी। प्रदूषण के स्रोतों पर अंकुश के लिए बेहतर जागरूकता और कार्रवाई के बावजूद, नवंबर (जो हाल के वर्षों में प्रदूषण के लिहाज से सबसे मुश्किल महीना बनकर उभरा है) को काबू में ला पाना बाकी है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पुआल जलाने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले मोटे तौर आधी हैं, हालांकि आगामी हफ्तों में ऐसी गतिविधि बढ़ने के आसार हैं। पहले जो भी उपाय देखे गये हैं वह वायु प्रदूषण से निपटने के लिए संस्थागत प्रतिक्रिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि नवंबर की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए समन्वित तरीका अपनाया जाए। पुआल जलाने से परे, इसका मतलब है वाहनों से होने वाले प्रदूषण और निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल की ज्यादा कठिन चुनौतियों से निपटना। शहरी दिल्ली ने प्रदूषण संकट के लिए हमेशा दूर स्थित खेतों की आग को दोष दिया हो सकता है, लेकिन दिक्कत भरे नवंबर से निपटने का मतलब कड़े उपाय और अपेक्षाकृत ज्यादा असुविधा हो सकते हैं। इस चुनौती से पार पाने के लिए, सीएक्यूएम जैसे निकायों को अपनी स्वतंत्र साख की दावेदारी करनी होगी और दिल्ली व आसपास के राज्यों के भीतर बेहतर समन्वय व अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।

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